महाराणा प्रताप
बहुत समय पहले, राजस्थान की वीर भूमि में एक बहादुर राजा का जन्म हुआ, जिनका नाम महाराणा प्रताप था। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह और माता का नाम रानी जयवंताबाई था।
जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ, तो पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई। लोग खुशी से झूम उठे और ढोल-नगाड़ों की आवाजें हर जगह गूंजने लगीं। महल में सब लोग छोटे प्रताप को देखने आए और उन्होंने नन्हें राजकुमार के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दीं।
प्रताप बचपन में “कीका” के नाम से जाने जाते थे. प्रताप बचपन से ही अदम्य साहसी और चतुर थे। वे अपने दोस्तों के साथ खेलते-कूदते और तरह-तरह की कहानियाँ सुनते-सुनाते थे। उन्हें घुड़सवारी और तलवारबाजी का बहुत शौक था। उनके पिता, महाराणा उदयसिंह, ने उन्हें युद्ध की कला और राज्य के नियम-कानून सिखाए।
छोटे प्रताप ने अपने माता-पिता और गुरुजनों से सीखा कि अपने राज्य और प्रजा की रक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है। वे हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते थे।
आदिवासी समुदाय “भील” लोगों से उनकी गहरी दोस्ती हो गई. भील बहुत ही बहादुर और जंगल के जानकार होते थे. उन्होंने ही कीका को घुड़सवारी, तलवार चलाना, तीर-कमान से निशाना लगाना और जंगल में लड़ाई करने के गुर सिखाए. कीका बचपन से ही मजबूत, निडर और ईश्वर को मानने वाला था.
प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था, जो बहुत ही तेज और बुद्धिमान था। प्रताप और चेतक की जोड़ी अद्भुत थी। वे दोनों हमेशा साथ रहते और एक-दूसरे का ख्याल रखते थे। एक दिन प्रताप ने अपने दोस्तों से कहा, “मैं बड़ा होकर अपने राज्य की रक्षा करूंगा और किसी भी दुश्मन को अपने राज्य में नहीं घुसने दूंगा।” सभी दोस्तों ने उनकी बातों पर जोरदार तालियाँ बजाईं।
शेर का बच्चा और वीर प्रताप:
कीका जंगल के जानवरों से भी बहुत प्यार करते थे. एक दिन, जंगल में खेलते वक्त उन्हें एक शेर का बच्चा मिला. वह अकेला और डरा हुआ था. कीका ने उसे अपनी माँ से बिछड़ा हुआ समझा. उन्होंने उस शेर के बच्चे को दूध पिलाया और उसकी देखभाल की. धीरे-धीरे, शेर का बच्चा कीका का दोस्त बन गया. वो दोनों जंगल में साथ-साथ खेलते थे, पेड़ों पर चढ़ते थे और नदियों में तैरते थे. जंगल की हर आवाज़ को वे पहचानने लगे थे.
एक बार, मुगलों के सैनिक शिकार के बहाने जंगल में आए. उन्होंने जंगल के जानवरों को बेरहमी से मारना शुरू कर दिया. कीका ने ये देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. उन्होंने अपने भील दोस्तों के साथ मिलकर मुगलों को जंगल से भगा दिया. कीका ने छोटी उम्र में ही सीखा था कि जो सही है, उसके लिए लड़ना चाहिए.
मुगलों के खिलाफ संघर्ष:
महाराणा प्रताप का शासनकाल मुगलों के साथ संघर्षों से भरा हुआ था। अकबर, जो उस समय का शक्तिशाली मुगल सम्राट था, ने पूरे भारत को अपने अधीन करने का सपना देखा था। उसने कई राजपूत राजाओं को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। वे स्वतंत्रता के प्रतीक बने रहे और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष करते रहे।
हल्दीघाटी का युद्ध:
1576 में हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच हुआ। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने घोड़े चेतक के साथ युद्धभूमि में अद्वितीय पराक्रम दिखाया। चेतक ने अपने स्वामी की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी, लेकिन महाराणा प्रताप की वीरता को झुका नहीं सका। हल्दीघाटी का युद्ध भले ही निर्णायक न रहा हो, लेकिन यह महाराणा प्रताप की अडिगता और साहस का प्रतीक बन गया।
छापामार युद्ध और राज्य की पुनर्स्थापना:
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने अपने राज्य की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष जारी रखा। उन्होंने अपनी सेना को पुनर्गठित किया और छापामार युद्धनीति अपनाई। उनके नेतृत्व में मेवाड़ के वीर योद्धाओं ने मुगल सेना को कई बार हराया। प्रताप ने अपने राज्य की रक्षा के लिए जंगलों और पहाड़ियों में जीवन बिताया, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी।
महाराणा प्रताप का जीवन केवल युद्धों और संघर्षों का नहीं था। वे अपने प्रजा के प्रति अत्यंत संवेदनशील और न्यायप्रिय राजा थे। उन्होंने अपने राज्य में कृषि, पशुपालन और व्यापार को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में मेवाड़ ने एक नए युग की शुरुआत की। उन्होंने अपने राज्य में नई नीतियाँ लागू कीं और अपने प्रजा के जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए अनेक उपाय किए।
महाराणा प्रताप के जीवन की अंतिम दिन भी उनके संघर्षशीलता और संकल्प के प्रतीक थे। 19 जनवरी 1597 को चावंड में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी वीरता और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण की कहानियाँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। महाराणा प्रताप न केवल मेवाड़ के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि स्वतंत्रता और सम्मान के लिए लड़ाई कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
महाराणा प्रताप की गाथा एक अमर कहानी है जो आने वाली पीढ़ियों को साहस, संकल्प और देशभक्ति का पाठ पढ़ाती रहेगी। उनकी वीरता और संघर्ष की कहानियाँ हर भारतीय के दिल में गर्व और प्रेरणा का संचार करती हैं। महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है और वे सदैव हमारे नायक बने रहेंगे।