स्वराज्य स्थापना की प्रतिज्ञा

रायरेश्वर का मंदिर : पुणे की दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित रायरेश्वर का मंदिर बड़ा सुंदर स्थान था । ई.स. १६४५ में वहाँ एक विलक्षण घटना घटी । शिवाजी महाराज और आस-पास की घाटी के कुछ मावले विचार-विमर्श करने के लिए वहाँ इकट्ठे हुए थे। उस घने जंगल में पेड़ों और झाड़ियों के बीच स्थित रायरेश्वर के मंदिर में वे मावले शिवाजी महाराज के साथ किस बात की चर्चा कर रहे थे ? शिव शंकर से वे क्या माँग रहे थे ?

बाल शिवबा की तेजस्वी वाणी शिवाजी महाराज आयु में अभी बहुत छोटे थे परंतु उनकी महत्त्वाकांक्षा ऊँची थी। उन्होंने एक बड़ी योजना बनाई। शिव मंदिर में इकट्ठे हुए अपने साथियों से उन्होंने बड़े उत्साह और विश्वास के साथ कहा, “साथियो ! क्या आज मैं तुम्हें अपने मन की एक बात बताऊँ ? हमारे पिता जी शहाजीराजे बीजापुर के सरदार हैं। उन्होंने ही हमें यहाँ की जागीर का अधिकार दिया है। सब कुछ तो ठीक चल रहा है ! मगर साथियो, मुझे इसमें जरा-सी भी खुशी नहीं है। सुलतान की जागीर से हम क्यों संतुष्ट रहें ? दूसरों के हाथ से हम पानी क्यों पीएँ ? हमारे चारों तरफ कई दूसरे राज्य हैं। उनमें प्रायः युद्ध चलते रहते हैं। इन युद्धों में हमारे आदमी व्यर्थ ही मरते हैं। बहुत-से परिवार बेघर हो जाते हैं। हमारे प्रदेश की बरबादी होती है। इतना सब सहकर भी हमें क्या मिलता है ? पराधीनता ! हम कितने दिनों तक इसे सहते रहेंगे ? दूसरों के लिए हम कितने दिनों तक कटते-मरते रहेंगे ? बताइए, आप ही बताइए ! जागीरों के लोभ से क्या हम इसे ऐसे ही चलने देंगे ?”

शिवाजी महाराज आवेश के साथ बोल रहे थे। क्रोध से उनका चेहरा तमतमा रहा था । बोलते-बोलते वे रुक गए । उन युवा साथियों की ओर देखने लगे। रायरेश्वर के मंदिर में इकट्ठे मावले शिवाजी महाराज की बातों से रोमांचित हो उठे। उन्हें नई दृष्टि मिली। उनमें से एक बोल उठा, “बोलिए, बालराजे, बोलिए। अपनी मनोकामना हमें बताइए । आप जो कहेंगे; वह करने के लिए हम तैयार हैं।” “जी हाँ! राजे, आप जो कहेंगे, वही हम करेंगे । अपने प्राण भी देंगे।” वे सभी तेजस्वी युवा वीर एक स्वर में बोल उठे ।

स्वराज्य की शपथ : मावलों के इन शब्दों से शिवाजी महाराज उत्साहित हुए। एक-एक की ओर देखते हुए वे खुशी से बोले, “मित्रो ! हमारा मार्ग निश्चित हो गया। अपने ध्येय के लिए हम सब प्रयत्न करेंगे। हम सब कष्ट उठाएँगे; सभी अपने प्राण अर्पण करने के लिए तैयार रहेंगे । हम सबका लक्ष्य है हिंदवी स्वराज्य ! आपका, हमारा, सबका स्वतंत्र राज्य स्थापित करना है। दूसरों की पराधीनता हमें स्वीकार नहीं है। उठो ! इस रायरेश्वर को साक्षी मानकर हम प्रतिज्ञा करें। स्वराज्य स्थापना के लिए हम अपना सर्वस्व अर्पण करेंगे।”

सारा मंदिर शिवाजी महाराज के शब्दों से गूंज उठा। अंत में उन्होंने निश्चयपूर्वक कहा, “यह राज्य हिंदवी स्वराज्य के रूप में हो, ऐसी ईश्वर की इच्छा है। ईश्वर की इस मनोकामना को हम पूरी करेंगे।”

वे सारे मावले स्वराज्य की शपथ लेकर रायरेश्वर के मंदिर से बाहर आए। शिवाजी महाराज का मन भावाभिभूत हो गया। पुणे आते ही वे लाल महल में माँसाहेब के पास गए । उन्होंने घटित घटना का वर्णन माता जिजाबाई से किया । माँसाहेब धन्य हो गईं। उन्हें विश्वास हुआ कि उन्होंने जो सोचा था, बाल शिवाजीराजे उसे अवश्य पूरा करेंगे ।

मावल प्रदेश में मावलों का संगठन : शिवाजी महाराज अपने नए कार्य में जुट गए । मावलों को लेकर वे तलवारबाजी करने लगे । घुड़सवारी करना, पहाड़ियों में दुर्गम मार्ग ढूँढ़ना, दरों, घाटियों एवं गुप्त मार्गों आदि का निरीक्षण करना उनकी दिनचर्या हो गई। शिवाजी महाराज ने मावलों का हृदय जीत लिया। युवा मावले शिवाजी महाराज के लिए पागल हो गए। उनका मानना था कि जीएँगे तो शिवाजी महाराज के लिए और मरेंगे तो शिवाजी महाराज के लिए । शिवाजी महाराज की गतिविधियाँ समुद्र के ज्वार के समान बढ़ती गईं। शिवाजी महाराज ने पुणे के आस-पास के सभी गढ़ और किलों का अपने साथियों के साथ निरीक्षण किया। उन्होंने गुप्त मागों, सुरंगों, तहखानों, गोला-बारूद, अस्त्र- शस्त्र तथा शत्रु सेना के स्थलों की पूरी जानकारी शीघ्र ही प्राप्त कर ली ।

मावल प्रदेश के साथी: मावल प्रदेश में जगह-जगह कई देशमुख अपनी-अपनी जागीर सँभाले बैठे थे। उन्हें अपनी जागीर का बहुत लोभ था। वे जागीरों के लिए आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। इन झगड़ों में मराठों की शक्ति अनायास ही बरबाद हो रही थी; यह बात शिवाजी महाराज ने अच्छी तरह जान ली थी। उन्होंने उसे रोकने का दृढ़ निश्चय किया। शिवाजी महाराज देशमुखों के गाँवों में जाते और उन्हें ये बातें समझाते । उन्हें स्वराज्य के उद्देश्य से प्रभावित करते । शिवाजी महाराज ने अपनी मधुर वाणी से उन्हें अपना बना लिया परंतु कुछ लोगों ने उनकी अवज्ञा की। उन्हें भी शिवाजी महाराज सही रास्ते पर ले आए। मराठों के आपसी झगड़ों को उन्होंने समाप्त करवाया । सब उन्हें धन्यवाद देने लगे। मावल प्रदेश के झुंझारराव मरल, हैबतराव शिलमकर, बाजी पासलकर, विठोजी शितोले, जेधे, पायगुड़े, बांदल आदिदेशमुख शिवाजी महाराज की बात मानने लगे। मावल प्रांत में स्वराज्य की लहर तीव्र गति से बढ़ने लगी ।

शिवाजी महाराज की राजमुद्रा : शिवाजी महाराज के नाम से जागीर का प्रशासन प्रारंभ हुआ था। शहाजीराजे ने शिवाजी महाराज की स्वतंत्र राजमुद्रा तैयार की। वह इस प्रकार थी-

प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता ।।
शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते ।।

‘प्रतिपदा के चंद्रमा की तरह बढ़ने वाली और सारे संसार के लिए पूजनीय होने वाली यह राजमुद्रा शहाजीराजे के सुपुत्र शिवाजी राजा की राजमुद्रा लोगों के कल्याण के लिए है; यह संदेश देने वाली राजमुद्रा स्वराज्य की स्थापना का संकेत ही थी।

उस कालखंड में राजमुद्राएँ प्रायः फारसी भाषा में उकेरी जाती थीं परंतु शिवाजी महाराज की राजमुद्रा संस्कृत भाषा में थी। स्वराज्य की तरह ही स्वभाषा और स्वधर्म भी चाहिए किंतु दूसरे धर्मों का द्वेष भी न हो। शीघ्र ही सभी मावलों की समझ में आ गया कि शिवाजी महाराज ने यह कार्य लोककल्याण के लिए ही प्रारंभ किया है ।

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