शिवाजी महाराज का जन्म
उन दिनों चारों ओर अराजकता थी। उत्तर भारत से मुगल शासक शाहजहाँ ने दक्षिण को जीतने के लिए विशाल सेना भेजी थी। पुणे शहाजीराजे की जागीर थी। बीजापुर के आदिलशाह ने उसे ध्वस्त कर दिया था । शहाजीराजे अनेक कठिनाइयों से घिर गए थे-यहाँ कुआँ, वहाँ खाई। उनके जीवन में अस्थिरता आ गई थी। इन्हीं परिस्थितियों में जिजाबाई गर्भवती थीं तब यह प्रश्न सामने आया कि ऐसी अराजकता की स्थिति तथा भाग-दौड़ में उन्हें कहाँ रखें, तब शहाजीराजे को शिवनेरी किले की याद आई।
उन्होंने जिजाबाई को शिवनेरी में रखने का निश्चय किया। पुणे जिले में जुन्नर के पास शिवनेरी यह अभेद्य किला है। उसके चारों ओर ऊँचे-ऊँचे टीले, मजबूत दीवारें तथा सुदृढ़ दरवाजे थे । किला बहुत मजबूत था। विजयराज उसके किलेदार थे। वे भोसले के रिश्तेदारों में से थे। उन्होंने जिजाबाई की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लिया। शहाजीराजे ने जिजाबाई को शिवनेरी में रखा। इसके पश्चात उन्होंने मुगलों पर आक्रमण किया।
…. और फिर वह सुदिन आया। फाल्गुन वद्य तृतीया शक संवत् १५५१ अर्थात अंग्रेजी वर्ष के अनुसार १९ फरवरी १६३० के दिन शिवनेरी के नक्कारखाने में शहनाई और नगाड़े बज रहे थे। ऐसे मंगलमय समय पर जिजाबाई ने पुत्ररत्न को जन्म दिया । किले में लोग खुशी से झूम उठे । बच्चे का नामकरण हुआ । शिवनेरी किले में जन्म लेने के कारण बालक का नाम ‘शिवाजी’ रखा गया ।
शिवाजी महाराज का बचपन :
शिवाजी महाराज के जीवन के प्रथम छह वर्ष बड़ी भाग- दौड़ में बीते। इस दौड़-धूप में भी जिजाबाई ने शिवाजी महाराज को बहुत उत्तम शिक्षा दी। संध्याकाल को वे दीया जलार्ती । शिवाजी महाराज को पास बिठाकर उन्हें प्यार से सहलातीं । राम, कृष्ण, भीम और अभिमन्यु की कहानियाँ सुनातीं। संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव और संत एकनाथ के अभंग गाकर सुनार्ती । शिवाजी महाराज को वीर पुरुषों की कहानियाँ अच्छी लगती थीं। वे सोचते थे कि बड़े होकर वे भी उनकी भाँति पराक्रम दिखाएँ । जिजाबाई उन्हें साधु-संतों के चरित्र की कहानियाँ भी सुनातीं । फलस्वरूप उनमें साधु-संतों के लिए श्रद्धा भाव उत्पन्न हुआ । गरीब मावलों के बच्चे शिवाजी महाराज के साथ खेलने के लिए आते थे। कभी- कभी शिवाजी महाराज भी उनकी झोंपड़ियों में जाते । उनकी प्याज और रोटी बड़े चाव से खाते थे। उनके साथ मजेदार खेल खेलते थे। मावलों के बच्चे तो मानो जंगल के पक्षी थे। वे तोते, कोयल और शेर की हू-ब-हू बोली बोलते थे। मिट्टी के हाथी घोड़े बनाना, किले बनाना आदि उनके प्रिय खेल थे। लुका-छिपी का खेल खेलना, गेंद और लट्टू चलाना ये खेल तो सदैव खेलते थे। उनके साथ शिवाजी महाराज भी ये खेल खेलते थे । मावलों के बच्चे शिवाजी महाराज को बहुत चाहते थे ।