शिवाजी महाराज की शिक्षा का आरंभ
शिवाजी महाराज की शिक्षा का आरंभ : शहाजीराजे स्वयं संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। उन्होंने अनेक भाषाओं के पंडितों और कलाकारों को अपने दरबार में आश्रय दिया था। शिवाजी महाराज के लिए उन्होंने विद्वान शिक्षकों की नियुक्ति की थी। सात वर्ष की आयु होने के बाद उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। थोड़े समय में ही वे लिखने-पढ़ने में निपुण हो गए। वे स्वयं रामायण, महाभारत, भागवत की कथाएँ पढ़ने लगे । शहाजीराजे ने शिवाजी महाराज को युद्धकला सिखाने के लिए कुछ शिक्षकों की नियुक्ति की। उन्होंने शिवाजी महाराज को घुड़सवारी करना, कुश्ती लड़ना, गतका-फरी घुमाना, तलवार चलाना आदि कलाएँ सिखाना आरंभ किया। इस तरह बारह वर्ष की आयु में ही शिवाजी महाराज विभिन्न कलाओं और विद्याओं से परिचित हो गए ।
शीघ्र ही आदिलशाह ने शहाजीराजे को कर्नाटक के नायकों के राज्यों पर विजय प्राप्त करने के लिए भेजा। शहाजीराजे ने कर्नाटक जाने से पूर्व जिजाबाई और शिवाजी महाराज को पुणे भेज दिया। शहाजीराजे ने उनके साथ हाथी, घोड़े, पैदल सेना, कोष, ध्वज; साथ ही विश्वसनीय प्रधान, शूर सेनानी और ख्यातिप्राप्त विद्वान शिक्षकों को भेजा।
पुणे की कायापलट : जिजाबाई और शिवाजी महाराज पुणे पहुँचे । यहाँ आकर शिवाजी महाराज को अपने बचपन के दिन याद आए । बचपन में वे शिवनेरी की मिट्टी में खेले थे । सह्याद्रि के ऊँचे-ऊँचे पर्वतशिखर देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई । तत्कालीन पुणे आज की तरह महानगर न था। शहाजीराजे के शत्रुओं ने इस सुंदर गाँव को तहस-नहस कर दिया था । गाँव की संपत्ति नष्ट हो चुकी थी । मकान टूट चुके थे, मंदिर धराशायी हो चुके थे। शत्रु के डर से लोग गाँव छोड़कर भाग गए थे । खेती उजड़ गई थी। जंगल फैल गए थे । जंगलों में भेड़िये उत्पात मचा रहे थे। पुणे की ऐसी दुर्गति हो गई थी ।
जिजाबाई शिवाजी महाराज के साथ पुणे में रहने लगीं। जिजाबाई ने आस-पास के गाँववालों को बुलाकर आश्वस्त किया। लोगों को बड़ा धीरज मिला । लोग पुणे में आकर रहने लगे। वे खेतों में काम करने लगे । जिजाबाई ने ध्वस्त हुए मंदिर ठीक करवाए । मंदिरों में सुबह-शाम पूजा होने लगी। गाँव लोगों से भर गया। इस प्रकार पुणे का रूप बदल गया ।गाँव लोगों से भर गया। इस प्रकार पुणे का रूप बदल गया ।
शिवाजी महाराज की शिक्षा व्यवस्था : शिवाजी महाराज पुणे की जागीर में लौटे । फिर भी जिजाबाई की निगरानी में उनकी शिक्षा व्यवस्था चल रही थी। बेंगलोर से आते समय शहाजीराजे द्वारा भेजे गए प्रतिष्ठित शिक्षकों ने शिवाजी महाराज को अनेक शास्त्र, विद्या तथा भाषाओं का प्रशिक्षण दिया ।
उत्तम राज्य और प्रशासन कैसा हो, शत्रु से युद्ध कैसे करें, किले कैसे बाँधें; हाथी और घोड़ों की परख कैसे करें, शत्रुओं के दुर्गम (बीहड़) इलाकों में से खिसककर कैसे निकलें जैसी अनेक विद्याओं से शिवाजी महाराज अवगत हुए । शिवाजी महाराज की शिक्षा में हुई प्रगति देखकर जिजाबाई प्रसन्न हुईं।
वीरमाता जिजाबाई की शिवाजी महाराज को सीख : जिजाबाई कोई सामान्य महिला नहीं थीं। वे लखुजीराव जाधव जैसे शक्तिशाली सरदार की बेटी और शहाजीराजे जैसे पराक्रमी पुरुष की पत्नी थीं। राजनीति और युद्धनीति की घुट्टी जिजाबाई को बचपन से ही मिली थी । जाधव और भोसले दोनों प्रसिद्ध घरानों की युद्धप्रिय परंपरा उनके रोम- रोम में बसी थी। जिजाबाई स्वाभिमानी तथा स्वतंत्रताप्रिय थीं । मराठा सरदार चाहे जितना बड़ा पराक्रम दिखाएँ फिर भी सुलतानों के दरबार में उसे कोई महत्त्व नहीं मिलता था । इस बात का उन्हें बुरा अनुभव हुआ । भरे दरबार में निजामशाह ने उनके पिता की हत्या की थी। यह दुख भी उन्होंने सहन कर लिया था । जिजाबाई ने निश्चय किया था, ‘उनके पुत्र शिवबा इस प्रकार दूसरों की चाकरी नहीं करेंगे। वे स्वयं अपने लोगों का राज्य अर्थात स्वराज्य का निर्माण करेंगे।’ इस विचार से वे शिवाजी महाराज को सुसंस्कारित कर रही थीं ।
मावल में रहने वाले लोगों को मावले कहा जाता था । मावले ईमानदार, कठोर परिश्रमी और फुर्तीले थे। जीवटता में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था लेकिन सुलतानों के शासन से वे त्रस्त थे । सुलतानों की सेना गाँवों को लूटती थी। फलस्वरूप प्रजा को दर-दर भटकना पड़ता था । उनका कोई रखवाला नहीं था। शिवाजी महाराज सोचते थे कि ऐसे दुखी और पीड़ित लोगों के लिए कुछ करना चाहिए ।
घर लौटने पर जिजाबाई के साथ वे वार्तालाप करते थे । जिजाबाई कहती थीं, “शिवबा ! भोसलों के पूर्वज श्रीरामचंद्र थे । श्रीरामचंद्र ने दुष्ट रावण को मारा और प्रजा को सुखी बनाया। जाधवों के पूर्वज श्रीकृष्ण थे। उन्होंने दुष्ट कंस को मारा और प्रजा को सुखी बनाया। श्रीराम और श्रीकृष्ण के वंश में तुम्हारा जन्म हुआ है। अरे ! तुम भी दुष्टों का नाश कर सकोगे । तुम भी गरीबों को सुखी बना सकोगे ।”
माँसाहेब के उपदेश से शिवाजी महाराज को उत्साह मिलता था। राम, कृष्ण, भीम और अर्जुन आदि वीरों की कहानियाँ उन्हें याद आती थीं। वे ही वीर पुरुष शिवाजी महाराज के ध्यान, मन तथा स्वप्न में निरंतर रहते थे । शिवाजी महाराज सदैव यही सोचते थे, ‘जैसे वे वीर अन्याय के विरुद्ध लड़े; वैसे ही हम भी लड़ेंगे । जिस प्रकार उन्होंने दुष्टों का दमन किया, उसी प्रकार हम भी करेंगे । जिस प्रकार उन्होंने प्रजा को सुखी बनाया, वैसा ही हम भी करें । हम न्यायी, साहसी, पराक्रमी बनें ।
शिवाजी महाराज की नई शासन व्यवस्था : अब पुणे की जागीर में जिजाबाई के मार्गदर्शन में शिवाजी महाराज का नया शासन प्रारंभ हो गया । इस काम के लिए शहाजीराजे ने तैयारी करवा दी थी । शिवाजी महाराज को बेंगलोर से पुणे भेजते समय सामराज नीलकंठ पेशवे, बालकृष्ण हनमंते मुजुमदार, माणकोजी दहातोंडे सरनोबत, रघुनाथ बल्लाल सबनीस, सोनोपंत डबीर जैसे अनुभवी व्यक्ति उनके साथ कर दिए थे । मानो ये सब स्वतंत्र राजा के अधिकारी ही हों। शहाजीराजे ने इन अधिकारियों को पुणे इसलिए भेजा था कि शिवाजी महाराज अपनी जागीर का प्रशासन अच्छी तरह से चलाएँ । उनकी मदद से शिवाजी महाराज जागीर का प्रशासन चलाने लगे । लोगों के सुख-दुख की ओर ध्यान देने लगे । प्रजा पर अन्याय करने वालों को दंडित किया जाने लगा । एक तरह से शहाजीराजे की जागीर में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा था । भविष्य में निर्मित स्वराज्य का नमूना मावलों को देखने को मिल रहा था । जैसे कि वह स्वराज्य का सूर्योदय ही था ।
शिवाजी महाराज का विवाह : उस समय बचपन में विवाह करने की प्रथा थी । तब जिजामाता ने कहा, “अब हमारे शिवबा का विवाह कर देना चाहिए ।” अतः उनके लिए सुयोग्य कन्या की खोज प्रारंभ हुई । उन्हें एक कन्या पसंद आईं । उनका नाम था सईबाई । वे फलटण के नाईक-निंबालकर घराने की बेटी थीं । यह विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ ।