छत्रपती शिवाजी महाराज का प्रतापगढ़ पर पराक्रम

दिलशाही दहल उठी : बीजापुर के दरबार की बात है। शिवाजी महाराज की गतिविधियों को देखकर आदिलशाह के दरबार में चिंता फैल गई। सभी सरदार दरबार में इकट्ठे हुए । एक से बढ़कर एक पराक्रमी तलवारबाज सरदार दरबार में उपस्थित थे। आदिलशाही का प्रशासन चलाने वाली बड़ी बेगम स्वयं उपस्थित थी। दरबार के सामने बड़ी गंभीर समस्या उपस्थित हुई थी – ‘शिवाजी को कैसे पराजित करें ?’

बड़ी बेगम ने दरबार के सरदारों से सीधा प्रश्न किया, “बोलिए, शिवाजी का बंदोबस्त करने के लिए कौन तैयार है ?”

दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी अपने अपने स्थान पर चुप बैठे थे। शिवाजी महाराज का सामना करने का साहस कौन करता ! सभी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उसी समय एक भीमकाय सरदार झुककर सलाम करता हुआ आगे बढ़ा। उसका नाम था अफजल खान ।

खान ने बीड़ा उठाया : थाल में रखा हुआ बीड़ा उठाते हुए अफजल खान ने कहा, “शिवाजी ! कहाँ का शिवाजी ? या तो उसे जीवित पकड़कर मैं यहाँ लाता हूँ अन्यथा उसे मारकर बीजापुर ले ही आऊँगा ।”

अफजल खान बीजापुर का विख्यात सरदार था । वह बहुत शक्तिशाली था । लोहे की छड़ को हाथ से मोड़ देता था। अच्छे-बुरे किसी भी ढंग से अपना काम करने में वह अत्यंत कुशल था। उसी अफजल खान ने भरे दरबार में शिवाजी महाराज को जीवित पकड़कर अथवा मारकर लाने की प्रतिज्ञा की। सारा दरबार खुश हुआ। उपस्थित सभी व्यक्तियों को ऐसा लगा, ‘शिवाजी भोसले अब क्या जिंदा बचेगा ? थोड़े ही दिनों में वह बंदी अवस्था में बीजापुर के दरबार में हाजिर होगा या उसका सिर दरबार में पेश किया जाएगा ।’

अफजल खान बड़ी अकड़ और शान से बीजापुर से चल पड़ा। उसने अपने साथ विशाल सेना और युद्ध सामग्री ली थी। इसके पूर्व वह लगातार बारह वर्षों तक वाई प्रांत का सूबेदार रह चुका था। इस कारण उसे उस प्रदेश की पूरी जानकारी थी । बड़े घमंड से वह महाराष्ट्र की ओर बढ़ने लगा ।

स्वराज्य पर संकट : उस समय शिवाजी महाराज राजगढ़ में थे। ‘अफजल खान आ रहा है’, यह सूचना उन्हें मिली। वे समझ गए कि स्वराज्य पर बड़ा संकट आ रहा है। मगर वे डगमगाए नहीं। उन्होंने सोचा कि अफजल खान बड़ा धूर्त है। उसकी सेना विशाल है। अपना राज्य छोटा है और अपनी सेना भी कम है। खुले मैदान में खान के सामने टिक पाना कठिन है । अतः शिवाजी महाराज ने निश्चय किया कि उसका सामना युक्ति से करना चाहिए । वे जिजामाता से विचार-विमर्श करके और उनका आशीर्वाद लेकर राजगढ़ से निकले और प्रतापगढ़ की ओर चल पड़े ।

अफजल खान के दाँव-पेंच : शिवाजी महाराज के प्रतापगढ़ पहुँचने की खबर सुनकर खान क्रोधित हुआ । वह जानता था कि प्रतापगढ़ पर आक्रमण करना सरल नहीं है क्योंकि वह किला पहाड़ों के मध्य में था। चारों ओर घने जंगल थे, रास्ते में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे । सेना को जाने के लिए अच्छा रास्ता नहीं था । तोपें चढ़ाने के लिए कोई मार्ग न था । इसके अलावा वहाँ जंगली जानवरों की भरमार थी ।

शिवाजी महाराज प्रतापगढ़ से उतरकर नीचे आ जाएँ इसलिए अफजल खान ने दाँव-पेंच खेलना शुरू कर दिया । उसने तुलजापुर, पंढरपुर आदि देव स्थानों को क्षति पहुँचाई । प्रजा को बहुत कष्ट दिए । उसका यह अनुमान था कि यह सब सुनकर शिवाजी महाराज प्रतापगढ़ छोड़ देंगे और बाहर आ जाएँगे । शिवाजी महाराज खान के दाँव-पेंच समझ गए। उन्होंने प्रतापगढ़ छोड़ा ही नहीं । तब खान ने दूसरी चाल चली। प्यार का नाटक करके उसने शिवाजी महाराज को यह संदेश भेजा, “आप मेरे बेटे के समान हैं। हमसे मिलने आइए । हमारे किले वापस कर दो । आदिलशाह से कहकर मैं आपको सरदार का पद दिलाऊँगा ।”

 

सेर को सवा सेर : शिवाजी महाराज ने जान लिया कि अफजल खान उनके साथ षडयंत्र कर रहा है । वे सतर्कतापूर्वक व्यवहार कर रहे थे । उन्होंने खान को ही प्रतापगढ़ की तलहटी तक लाने का निश्चय किया और संदेश भेजा, “खानसाहब, मैंने आपके किले लिए हैं। मैं अपराधी हूँ। मुझे क्षमा करें । आप ही प्रतापगढ़ के नीचे मिलने के लिए आ जाइए । मुझे वहाँ आने में डर लगता है।”

शिवाजी महाराज का संदेश सुनकर अफजल खान हँसा । अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए वह बोला, “खूब ! बहुत खूब ।” उसे लगा कि अफजल खान के सामने शिवाजी की क्या मजाल ! वह डरपोक मेरे साथ क्या लड़ेगा ? मैं खुद जाऊँगा और मिलते ही उसे कुचलकर मार डालूँगा । बस, प्रतापगढ़ के नीचे शिवाजी महाराज से मिलने के लिए खान तैयार हो गया ।

भेंट निश्चित हुई : प्रतापगढ़ की तलहटी में मिलने की जगह निश्चित हुई । दिन, समय सब निश्चित हो गया । तय हुआ कि भेंट के समय दोनों अपने साथ एक-एक सेवक रखेंगे और दोनों के दस-दस अंगरक्षक कुछ दूरी पर खड़े रहेंगे । खान के लिए महाराज ने अच्छा रास्ता बनवाया । मिलने के लिए एक शानदार शामियाना तैयार करवाया ।

शिवाजी महाराज बड़ी सावधानी से काम ले रहे थे। उन्होंने अपनी सेना की अलग-अलग टुकड़ियाँ बनाईं । जंगल में कौन-कहाँ छिपकर बैठेगा और क्या करेगा, इस बारे में उन्होंने सबको सूचनाएँ दीं । पक्का बंदोबस्त किया। कुछ सलाहकारों ने कहा कि खान धूर्त है। शिवाजी महाराज उससे मिलने के लिए न जाएँ किंतु शिवाजी महाराज ने खान से मिलने का निश्चय किया । मिलने की तैयारी मिलने का दिन आ गया। 

Shivaji Maharaj Dress

प्रातः समय शिवाजी महाराज ने देवी भवानी के दर्शन किए। थोड़ी देर के बाद उन्होंने पोशाक पहननी शुरू की। पैरों में सलवार चढ़ाई, शरीर पर कवच पहना । उसपर जरी का कुर्ता और जाकिट पहनी। सिर पर शिरस्त्राण पहना। उसपर फेटा बाँधा । बाएँ हाथ की उँगलियों में बाघ नख चढ़ाए । उसी हाथ की आस्तीन में कटार छिपाई । अपने साथ पट्टा (पटा) लिया । इस प्रकार शिवाजी महाराज खान से मिलने के लिए तैयार हुए ।

सरदार लोग बाहर खड़े थे। शिवाजी महाराज ने उनसे कहा, “साथियो, अपने-अपने काम ठीक तरह से करना। भवानी माता हमें यश देने वाली हैं परंतु यदि हमारा कुछ अहित हुआ तो आप धीरज मत खोना । संभाजीराजा को गद्दी पर बिठाना । माँसाहेब की आज्ञा मानना । स्वराज्य को बढ़ाना । प्रजा को सुखी रखना । हम जा रहे हैं।” शिवाजी महाराज चल पड़े। उनके साथ वकील पंताजी गोपीनाथ और जिवाजी महाला, संभाजी कावजी, येसाजी कंक, कृष्णाजी गायकवाड, सिद्दी इब्राहिम आदि दस अंगरक्षक थे।

शिवाजी महाराज से पहले ही खान शामियाने में आकर बैठ गया था। वह तरह-तरह की कल्पनाएँ कर रहा था। उसकी बगल में सय्यद बंडा नाम का उसका हथियारबंद एक सिपाही खड़ा था । वह पट्टा चलाने में बहुत निपुण था । शिवाजी महाराज शामियाने के द्वार पर आए । बड़ा सय्यद को देखते ही वे वहीं पर खड़े हो गए । खान ने महाराज के वकील से पूछा,

“शिवाजी राजे अंदर क्यों नहीं आ रहे हैं?” वकील ने कहा, “वे सय्यद बंडा से डर रहे हैं। उसे आप दूर हटा दीजिए।” सय्यद बंडा वहाँ से हट गया । शिवाजी महाराज अंदर गए । खान उठकर बोला, “आइए, राजासाहब ! हमसे मिलिए।”

Shivaji Maharaj and afjhal khan

खान से झड़प : महाराज सतर्क होकर आगे बढ़े । खान ने शिवाजी महाराज को गले लगाया । लंबे-चौड़े अफजल खान के सामने महाराज ठिगने से दीख रहे थे । महाराज का सिर खान की छाती तक पहुँचा था। खान ने तुरंत शिवाजी महाराज को मारने के लिए उनकी गरदन अपनी बाईं बगल में दबाई और दूसरे हाथ से शिवाजी महाराज के शरीर पर कटार से वार किया । शिवाजी महाराज ने पहना हुआ अंगरखा फट गया । कुर्ते के अंदर कवच होने से शिवाजी महाराज बच गए । वे खान की चाल समझ गए । बड़ी फुर्ती से उन्होंने खान के पेट पर बघनखों से वार किए । बाएँ हाथ की आस्तीन में छिपी कटार दाहिने हाथ से निकालकर उसे जोर से खान के पेट में घुसेड़ दी । खान की आँत बाहर निकल आई । वह धराशायी हो गया । इतने में खान का वकील कृष्णाजी भास्कर आगे बढ़ा । उसने शिवाजी महाराज पर तलवार से वार किया मगर शिवाजी महाराज ने पट्टे के एक वार से ही उसे मार गिराया । शोरगुल सुनकर सय्यद बंडा डेरे में घुसा। वह शिवाजी महाराज पर वार करने ही वाला था कि तत्क्षण जिवाजी महाला दौड़कर आया । सय्यद बंडा के वार को अपने शरीर पर झेलकर जिवाजी महाला ने उसे एक ही वार में वहीं पर मार गिराया । इसीलिए आगे चलकर था जिवा इसलिए बचा शिवा ऐसी कहावत ही प्रचलित हो गई । इस झड़प में संभाजी कावजी ने बड़ी वीरता दिखाई ।

खान की सेना की दुर्गति : विजयी शिवाजी महाराज गढ़ पर चले गए । संकेत के लिए तोप दागी गई । शिवाजी महाराज की सेना संकेत की ही प्रतीक्षा में थी। तोप के दगते ही झाड़ियों में छिपे शिवाजी महाराज के सैनिकों ने खान की सेना पर धावा बोल दिया । खान की सेना असावधान थी । उसकी सेना को भागने के लिए राह भी नहीं मिल रही थी। मराठों ने उनका तेजी से पीछा किया और खान की सेना की धज्जियाँ उड़ा दी। खान का बेटा फजल खान किसी तरह बच निकला और बीजापुर पहुँचा । उसकी बातें सुनकर बीजापुर में हाहाकार मच गया ।

शिवाजी महाराज ने बीजापुर के सबसे शक्तिशाली सरदार को देखते-ही-देखते मिट्टी में मिला दिया था । शिवाजी महाराज का नाम चारों ओर फैल गया । उनके पराक्रम के गीत सह्याद्रि की घाटियों में गूंजने लगे ।

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