लाल महल में पराक्रम
शाइस्ता खान का आक्रमण: बीजापुर के आदिलशाह ने बहुत कोशिश की परंतु शिवाजी महाराज के आगे उसकी एक न चली। उसके प्रत्येक सरदार को शिवाजी महाराज ने बुरी तरह से पराजित किया। अंत में आदिलशाह ठंडा पड़ गया। उसने शिवाजी महाराज के साथ संधि कर ली और उनका स्वतंत्र राज्य स्वीकार कर लिया। इस कारण दक्षिणी हिस्सा कुछ समय तक सुरक्षित रहा ।
इसके बाद शिवाजी महाराज उत्तर में मुगलों की ओर मुड़े । मुगलों के आक्रमण से महाराष्ट्र की दुरवस्था हो गई थी। उस समय दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब था। उसके प्रदेश पर शिवाजी महाराज ने आक्रमण किए। इससे बादशाह क्रोध में आ गया। शिवाजी महाराज पर आक्रमण करने के लिए उसने अपने मामा शाइस्ता खान को भेजा। उसने पुणे पर आक्रमण किया। उसके साथ पचहत्तर हजार सैनिक थे। सैकड़ों हाथी, ऊँट और तोपें थीं । शाइस्ता खान शिरवल, शिवापुर और सासवड़ आदि गाँव जीतता हुआ आगे बढ़ा। उसने पुरंदर किले को घेर लिया। वह आगे ही बढ़ा था कि एक बार मराठों ने उसे दरें में घेर लिया । मराठा बहुत फुर्तीले और भीमा प्रदेश के घुड़सवार थे। रोटी चटनी खाना, शरीर पर कंबल ओढ़ना और हवा की तरह पहाड़ों में भाग-दौड़ करने में मराठा बड़े होशियार थे। मराठों की छापामार पद्धति से शाइस्ता खान की सेना परेशान हो गई । अंततः तंग आकर उसने पुरंदर का घेरा उठवा लिया ।
फिरंगोजी नरसाला : अब शाइस्ता खान पुणे की ओर चल पड़ा। पहले उसने चाकण का किला कब्जे में कर लिया। चाकण के किले में फिरंगोजी नरसाला ने बड़े पराक्रम से शाइस्ता खान का सामना किया। दो महीने फिरंगोजी किले की सुरक्षा के लिए लड़ता रहा परंतु शाइस्ता खान की तोपों के सामने वह टिक न सका । फिरंगोजी नरसाला की वीरता पर शाइस्ता खान प्रसन्न हुआ। उसने उसे शाही नौकरी का लोभ दिखाया लेकिन फिरंगोजी लोभ में नहीं आया ।
लाल महल में शाइस्ता खान: अब शाइस्ता खान पुणे आया। वह शिवाजी महाराज के लाल महल में रुका। उसकी सेना ने लाल महल के चारों ओर पड़ाव डाला। एक वर्ष बीता, दूसरा बीता परंतु शाइस्ता खान लाल महल से टल नहीं रहा था; उल्टे वह अपनी सेना आस-पास के प्रदेश में भेजा करता । उसके सैनिक लोगों के जानवर पकड़ लाते; खेती का नुकसान करते। इस प्रकार उसने आस-पास के प्रदेश को तहस-नहस कर दिया था।
साहसपूर्ण योजना: शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान को सबक सिखाने का निश्चय किया। शाइस्ता खान लाल महल पर अधिकार जमाए बैठा था; यह बात शिवाजी महाराज की दृष्टि से सुविधाजनक थी क्योंकि शिवाजी महाराज को उस महल के कमरे, कक्ष, खिड़कियाँ, दरवाजे, रास्ते और गुप्त मार्ग आदि की भली- भाँति जानकारी थी। इसके अतिरिक्त शिवाजी महाराज के चतुर गुप्तचर खान की सेना में पहुँच चुके थे। रात के समय सीधे शाइस्ता खान के महल में घुसकर उसे खत्म करने की शिवाजी महाराज ने योजना बनाई । कितना साहसपूर्ण निश्चय था वह ! महल में चींटी-कीड़ों तक को प्रवेश कठिन था । लाल महल के चारों ओर पचहत्तर हजार सैनिकों का कड़ा पहरा था । शाइस्ता खान ने सशस्त्र मराठों को शहर में आने के लिए मना कर रखा था परंतु जब शिवाजी महाराज निश्चय करते तो वह अटल हुआ करता था ।
शिवाजी महाराज ने दिन निश्चित किया । ५ अप्रैल १६६३ की रात । गाते-बजाते शादी की बारात जा रही थी । आगे चंद्रज्योतियाँ (दीये) जल रही थीं। सैकड़ों स्त्री-पुरुष सज-धजकर चल रहे थे। कोई पालकी में, कोई डोली में तो कोई पैदल चल रहा था । अपने आदमी लेकर शिवाजी महाराज उस बारात में घुस गए थे । बारात आगे निकल गई । सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था । शिवाजी महाराज और उनके आदमी लाल महल की दीवार की ओर बढ़े । उस समय शाइस्ता खान गहरी नींद में था ।
शाइस्ता खान को सबक सिखाया : महल की दीवार में बड़ी सेंध बनाकर शिवाजी महाराज अंदर घुस गए। उनका अपना महल था वह ! वे उसका कोना-कोना जानते थे । खान के पहरेदार ऊँघ रहे थे । शिवाजी महाराज के आदमियों ने उन्हें बाँध दिया । शिवाजी महाराज और अंदर घुस गए । इतने में तलवार लिये कोई उनकी ओर दौड़ता हुआ आया । शिवाजी महाराज ने उसे मार गिराया । उन्हें लगा कि वह शाइस्ता खान होगा लेकिन वह उसका बेटा था। शोर मच गया । लोग जाग गए ।
शिवाजी महाराज सीधे खान के कमरे में पहुँचे । उन्होंने तलवार निकाली। शाइस्ता खान डर गया। “शैतान ! शैतान !” चिल्लाता हुआ वह खिड़की से भागने की कोशिश करने लगा । शिवाजी महाराज उसके पीछे दौड़े । शाइस्ता खान खिड़की से बाहर कूदने ही वाला था कि शिवाजी महाराज ने उसपर वार किया । खान की तीन उँगलियाँ कट गईं। जो प्राणों पर गुजरनेवाली थी वह उँगलियों पर निभ गई । खान खिड़की से कूदकर भाग निकला । उसे धोखे में रखने के लिए शिवाजी महाराज और उनके आदमी “शिवाजी आया । दौड़ो, दौड़ो ! पकड़ो उसे !” चिल्लाते हुए भागने लगे । खान के आदमी भी डरकर भाग रहे थे। शिवाजी महाराज और उनके आदमी सिंहगढ़ की ओर चले गए । खान के आदमी रातभर शिवाजी महाराज को ढूँढ़ते रहे ।
शाइस्ता खान बुरी तरह डर गया था । उसे भय सताने लगा, ‘आज उँगलियाँ कट गईं, कल शिवाजी मेरा सिर काटकर ले जाएगा ।’ यह समाचार मिलते ही बादशाह औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ । वह शाइस्ता खान पर बहुत नाराज हुआ । उसने शाइस्ता खान को बंगाल जाने का आदेश दिया ।
मुगल शासन के लिए यह पहली जबरदस्त चोट थी । शिवाजी महाराज विजयी हुए । तोपें दागी गईं। सारे महाराष्ट्र में आनंद छा गया ।